एक थे लम्बूद्दीन 'लंब',
हम कहते नहीं है दंभ,
थे वो इस कदर लंबे,
पाँव जैसे खंबे !
हाथ जैसे कानून,
ये लंबे, ये ssss लंबे !
एक थे मोटूराम 'मोटी',
हम देतें नहीं गोटी,
तोंद उनकी ये मोटी,
ये ssss भयंकर मोटी,
की साक्षात 'मोटा' शब्द,
उनके समक्ष लगता था दुबला !
हर तबीयत, हर तंदरुस्ती,
उनके सामने थी खोटी !
'लंब' और 'मोटी' मिले जिस दिन,
ज्ञानी जन कहते है की उस दिन,
नक्षत्रों का बना विचित्र योग ,
ऐसा संयोग अत्यंत दूभर,
आंकड़े ऐसे , परे सब मति,
यदा कदा, सदियों में, होती ऐसी युति.
हुआ लंब और मोटी का मिलन जब ,
धरे के धरे रह गए, सारे तर्क विज्ञान, सब ज्योतिषी,
व्याकरण रह गया ताकता फटी आँख ,
संधि के नियमों को पहना दी गयी टोपी ,
'ब' और 'मो' मिलकर हुआ 'गो'
लंब 'धन' मोटी बन गया 'लंगोटी' !
यारी दोनों की चढ़ी वो परवान,
की नीचे रह गए सारे वेद कुरान ,
उठी इंसानियत, बन कर सरताज,
नयी दिशा, जीवन का नया आगाज़,
बस प्रेम बना सत्य अंतिम ,
बाकी सब बातें बेकार,
और शुरू प्रचलन नया मुहावरा,
तू है मेरा 'लंगोटिया यार' !
8 comments:
बस प्रेम बना सत्य अंतिम ,
-यही होना भी चाहिये.
ओह लंगोटिया होनें की शर्त :)
या तो लम्बा याफिर मोटा !
कहां जायें अब ऊंचा छोटा ?
तो ये है लंगोटिया यार की परिभाशा। बहुत बढिया । बधाई।
00/10
लानत है मियां
आपसे एक अदद कायदे की रचना पोस्ट नहीं होती
क्या है ये सब ???
हा हा हा……………मज़ेदार्।
मजेदार है पर कुछ साल बाद ये कहावत बदलनी बढेगी क्योकि अब तो बच्चे लंगोटी छोड़ डाईपर पहनने लगे है और बड़े हो कर वो कहेंगे की हम तो डैपरिय यार है | हा हाहा
सभी का ब्लॉग में पधारने और टिपण्णी करने के लिए आभार ....
बहुत ही सुंदर.
http://sudhirraghav.blogspot.com/
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