दावा दारु है लिखते संग संग,
राज़ है इसका कुछ कुछ ऐसा,
थोडा मिला कर दिया जाए जो,
दारु का असर, दवा के जैसा !
है भेद पर इससे भी कुछ गहरा,
अँधेरी हद पर बसे सवेरा,
सीधे सीधे समझ न आए,
जिंदगी 'मजाल', खेल है टेढ़ा !
आए मौसम पतझड़, सावन,
कई मिले और बिछड़े साथी,
आए, रुके और बीत गए सब,
पल खुशियों के, या ग़म साथी.
जिंदगी का खेल पेचीदा ,
उलझन, सुलझन मिल जुल आए,
कभी अपने दे जाएँ दगा, और,
कभी बेगाने मदद कर जाए !
सीखा उन्होंने धीरे धीरे,
रम से ग़म, होता नहीं कम,
पीना पड़ता, ग़म सीधे ही,
और थोड़े सलीके से सनम.
बदती उम्र ने सिखा दिया सलीका,
बातें वो, अब दिल पर ले नहीं जीतें,
लेतें है गम, मज़ाक के साथ घोल कर,
कि भाईसाहब कभी 'नीट' नहीं पीते!
7 comments:
अगर पीने से गम मिट जाते तो आज सारी दुनिया रन के नशे मे होती। व्यंग अच्छा है। शुभकामनायें।
बढ़िया करते हैं.
2/10
साधारण पोस्ट
जो पढ़े सो ठीक, न पढ़े तो और ठीक.
लेतें है गम, मज़ाक के साथ घोल कर,
कि भाईसाहब कभी 'नीट' नहीं पीते! ...laajavaab...shabd nahi hai...neat peena bhi nahi chaahiye...bahut badhiya..aabhaar.
लेतें है गम, मज़ाक के साथ घोल कर,
कि भाईसाहब कभी 'नीट' नहीं पीते ...
इस हास्य के चलते चलते क्या ग़ज़ब लिख दिया .... भाई इमोशनल कर दिया ....
आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ...
नीट नहीं पीने का जस्टीफिकेशन बढिया है !
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