चिंतन होवे अधीर,
पाना चाही सुकुनवा,
जइसन उड़ती चील !
मति ही मति का ठेंगा,
दिखाईने छोड़त सौ तीर,
उनमे से एक आदि,
निसाना लगत सटीक !
तब जाकर ई मगजवा,
आवे बाजन ढीठ !
आऊर लगाई ठाहाकवा,
भुलइके सारी टीस !
ईका न समझी तुम,
पका पकाया खीर,
कहत 'मजाल' ई ससुरा,
हास्य विसय गंभीर !
राँझा मिलन न हीर ?
फुटवा गया तकदीर ?
काहे शोक मनावत,
जीवन की बाकन रील,
कभी सलमान दबंगवा,
कभी पीटत हई वीर !
जीवन जइसन अमवा,
चीजन ई खट मीठ !
जब ई आवत समझवा,
मज़ाक बनत पेचीद !
जब ई आवत समझवा,
मज़ाक बनत पेचीद !
तब जाकर ई मनवा,
छोड़त तनना फीर,
अऊर इस तरहवा,
तनाव पावत ढील !
कहत 'मजाल' ई ससुरा,
तनाव पावत ढील !
कहत 'मजाल' ई ससुरा,
हास्य विसय गंभीर !
3 comments:
गुड़.
आपसे सहमत हूं ! हास्य सृजन कोई आसान बात नहीं !
आप लोगों का ब्लॉग में पधारने के लिए आभार ....
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