Friday, October 1, 2010

'यूँ बेहतर ! यूँ बेहतर !' - हास्य कविता ( Hasya Kavita - Majaal )

ज्यादा खाने से तो,
थोड़ा कम बेहतर,
खाना कम बेहतर,
की हज़म बेहतर !
कभी कभी खाना,
भी ग़म बेहतर,
ग़म बेहतर पर,
न हरदम बेहतर!

है वो बेहतर,
या मैं बेहतर ?
वो भी अच्छा,
पर हम बेहतर !
बेहतर-ए-बेहतरीन से,
भरी है महफ़िल,
तुकबंदी में मगर,
हम भी न कम बेहतर !

पहले अच्छा और,
फिर उससे बेहतर,
धीरे धीरे ही बनते,
सबसे बेहतर.
अब सबसे बेहतर भी,
यूँ तो क्या बेहतर (?)
की जो सोचने लगे,
'अब क्या इससे बेहतर ?!' 

जो हम बेहतर,
तो है बेहतर,
जो  वो बेहतर,
तो क्यूँ  बेहतर ?!
जिंदगी और शायरी  की,
एक सी हालत 'मजाल',
नज़र पड़ी जो आज,
' कि यूँ बेहतर ! कि यूँ बेहतर ! ' 

7 comments:

M VERMA said...

बेहतर
मजेदार

Satish Saxena said...

बहुत खूब ! आपके इस बेहतरीन ब्लाग का अनुसरण कर रहा हूँ ...आपको हार्दिक शुभकामनायें

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बेहतर

निर्मला कपिला said...

सब कुछ बेहत्तर हमारी क्या मजाल कि कहें नही बेहत्तर । हा हा हा बहुत बडिया । बधाई।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

हम तो इस गफ़लत में हैं ऐ आशीष,
मजाल बेहतर या मजाल की मजाल बेहतर?

उम्मतें said...

ज्यादा लिखनें से तो ,थोड़ा कम बेहतर !
कविता पर टिपियाना ना हरदम बेहतर !

अनामिका की सदायें ...... said...

ये भी बेहतर है.

Related Posts with Thumbnails