Wednesday, October 20, 2010

हास्य-कविता : ' उर्दू शायरी की तरह तुम, प्रिय ! ' ( Hasya Kavita - Majaal )

क्लिष्ट !
गूढ़ !
उलझी हुई !
मुश्किल !
पेचीदा !
मगर दिलचस्प !
उर्दू शायरी की तरह तुम, प्रिय !
समझ में तो,
कम ही आती हो,
मगर,
पढ़ने  में तुम्हें ,
मज़ा बहुत आता है !
कुल मिला कर,
कुछ खास,
पल्ले तो नहीं पड़ता,
मगर,
कोशिशों में,
समझने के,
प्रयासों में तुम्हें,
वक़्त तुम्हारे साथ,
अपना  खूब कट जाता है !

उर्दू शायरी की तरह तुम,
प्रिय !

6 comments:

anshumala said...

शेरो शायरी को ले कर अपना भी यही हाल है | पर ये खूब रही |

उम्मतें said...

हर आशिक के साथ कमोबेश यही गुज़रता है !

निर्मला कपिला said...

गज़लों को ले कर अपना भी यही हाल है। शुभकामनायें।

arvind said...

ha ha ha...khub rahi yah vyangya.

Majaal said...

आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए आभार ...

प्रतिभा सक्सेना said...

बहुत बढ़िया !उर्दू हमारी भी ठीक से समझ में नहीं आती ,अक्सर ही चकियाये से - बिलकुल आपकी तरह!

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