Sunday, October 24, 2010

पिता - जिक्र उनका, जो रह जातें है अक्सर बे-जिक्र से ..............

जिक्र उनका लफ़्ज़ों में, जिनसे है सीखे लफ्ज़ ?!
बस खुदा ही समझ लीजिये, इंसान की तरह ...

कुछ इस तरह से देतें, ऊपरवाले को सजदे,
करतें  है अपने काम को, ईमान की तरह !
है छोटा या बड़ा , ये फिकर उनको है नहीं,
लेतें है हर एक चीज़ को, मकाम की तरह ! 
जो कर रहे, उसी को बना लेतें है शगल,
मेहनत बना देतें है , वो आराम की तरह !

मौका हो  चाहे ख़ुशी का, या चाहे मिले ग़म,
कबूलतें सबकुछ, खुदा-फरमान की तरह !
एक जिंदगी का नशा ही, उनके लिए काफी,
पानी भी वो पीतें है, बिलकुल जाम की तरह !


हर कोई चाहे मिलना , माँ के जैसा दुलार,
की गहरा उसका प्यार, कोई खान की तरह,
खुशनसीबियों की  तेरी, इन्तिहाँ नहीं 'मजाल'
की माँ मिली है, बिलकुल अब्बाजान  की तरह !

बारिश से बचाया, कभी किया जाहिर नहीं,
रिश्ता मगर बुनियादी, छत-मकान की तरह !
 पेचीदगी,पोशीदगी, ही है  खूबसूरती ,
हिजाब में छुपी हुई , उस आन की तरह !

बेमिसाली की मिसाल, इससे ज्यादा क्या 'मजाल' ?
जीतें है  जिंदगी वो , बड़ी ही आम की तरह !

5 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पिता ऐसे ही होते हैं..

निर्मला कपिला said...

बेमिसाली की मिसाल, इससे ज्यादा क्या 'मजाल' ? बिलकुल सही हम कुच और तभी तो कह नही रहे हमारी भी क्या मज़ाल। शुभ्क़कामनायें।

उम्मतें said...

शुक्रगुज़ार होने का ये भी बेहतर तरीक़ा है !

Majaal said...

आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....

Unknown said...

वाह

जो कर रहे, उसी को बना लेतें है शगल,
मेहनत बना देतें है , वो आराम की तरह !

बहुत ही बढ़िया
बहुत ही रोचक
बहुत ही सार्थक कविता

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