"बिकी हुई दवाई,
नहीं होगी वापस भाई,
न कोई अदल-बदल,
और ना ही,
कोई और दखल !
कृपया दवाई उतनी ही लें,
जिंतनी की चाहिए,
इस तरह अपना मूल्य,
और समय अमूल्य,
दोनों को बचाइये ! "
कहने को एक तख्ती थी लकड़ी की,
जिस पर टंगा था एक विचार,
पर जो इस विचार पर किया जाए विचार,
तो पाइएगा मियाँ 'मजाल',
की छुपा हुआ है इसमें,
कितनें ही सालों का अनुभव,
किसी की जिंदगी का,
पूरा सार !
10 comments:
इस तरह अपना मूल्य,
और समय अमूल्य,
दोनों को बचाइये ! "
बहुत खूब आपने ने छोटीसी बात में जिन्दगीका सर दे दिया है !
‘किसी की जिदगी का पूरा सार‘
सार्थक पंक्तियां।
दवाई कौन खाना चाहता है,
अपने पैसे बरबाद करना कौन चाहता है..
nicely conveyed message!
saarthak sandesh...sundar kavita.
प्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी का आभार ....
अच्छा सन्देश देती रचना ..
1/10
आपको अब पोस्ट पढने के लिए कुछ पैसा भी पाठकों को देना चाहिए ... ऐसे नहीं चलेगा
क्या बात है बिल्कूल सही कहा |
मुझे तो पोस्ट ठीक ही लगी अब ये उस्ताद जी क्यों खफा हैं आपसे :)
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