Thursday, December 23, 2010

हास्य : प्यार, मोहब्बत और शायरी-ए-Fusion ( Shayari - Majaal )

जितना पुराना, उतना divine ,
प्यार है गोया  कोई wine !

जबतक बच्चों को लगे न रोग,
तब तक इश्कबाजी है fine !

प्यार की कीमत पता चली,
blank चेक  पर किया जब sign !

अब तो तू  हो जा मेरी,
उम्र होने को ninety nine !

हसरतों में निकली 'मजाल',
जिंदगी ने कभी दी ना line !

Tuesday, December 21, 2010

शायरी ( Shayari - Majaal )

बस खयालों में ही जिंदगी न गढ़ी जाए,
बातें कुछ तजुर्बे से भी कही जाए !

ये हालत इतने बुरे भी कहाँ यारों,
अखबार-ए-जिंदगी भी कभी पढ़ी जाए !

 औरों की खबर हुज़ूर होगी बाद में,
पहले अपने ईमाँ  से तो जंग लड़ी जाए !

उम्मीद माँगे कहाँ बड़ा सूरमा ?
'मजाल' से ही गिनती शुरू करी जाए !

Sunday, December 19, 2010

फलसफाई, शायरी और चुटकियाँ ( Shayari - Majaal )

ये रिश्ता चलता रहेगा  बढ़िया जाने,
अपनी कहें, हमारा नज़रिया जाने !

गर राज़ रखना है तो खुद में दफ़्न कर,
कहा एक को तो फिर सारी दुनिया जाने !

उनकी  शराफत के किस्से किनसे सुनेंगे ?
रमिया जाने उनको या फिर छमिया जाने !

अहसान लेने की नियत नहीं 'मजाल', 
इन मामलों में हमें कुछ बनिया जाने !

Friday, December 17, 2010

शायरी ( Shayari - Majaal )

आलती पालती बना कर बैठी है,
फुर्सत तबीयत से आ कर बैठी है !

कद्रदान बचे गिने चुने जिंदगी,
और तू हमीं से मुँह फुला कर बैठी है !

मुगालातें टलें  तब तो बरी हो,
सुकूं को कब से दबा कर बैठी है !

कमबख्त पुरानी आदतें न छूटती,
जाने क्या घुट्टी खिला कर बैठी है !

अब कोसती है ग़म को क्यों जनम दिया,
अभी अभी बच्चा सुला कर बैठी है !

'मजाल' आज जेब की फिकर करो,
मोहतर्मा  मुस्कां सजा कर बैठी है !

Sunday, December 12, 2010

विशुद्ध हास्य - आधुनिक कविता ( Hasya Kavita - Majaal )

!
ओं !
सुनो !
मजाल !
इसी तरह से,
बीच बीच में एंटर,
मार कर बन जाता है,
गद्य लेखन पद्य और फिर,
वो मुझे प्यार से कहती है की देखो,
ये है मेरी आधुनिक कविता !
ऊपर से नीचे तक देखता हूँ,
पढ़ता हुआ उसे, मगर,
समझ नहीं पाता ,
तो कह देता हूँ,
डिजाईन ,
अच्छा,
है !
!

Saturday, December 11, 2010

शायरी - यादों की चुस्कियाँ ( Shayari - Majaal )

कुछ घरेलु किस्म की शायरी ;)

मौके बेमौके हो जाते मेहरबान से,
बच कर ही रहिये ऐसे कद्रदान से !
 
जली जुबान दिन भर रखेगी परेशान,
यादों की चुस्कियाँ लीजिये इत्मीनान से !

नज़रंदाज़ कर करके संभाले है रिश्ते,
एक से सुना, निकला दूसरे कान से !

सुलझेगा न मुद्दा, नुमाइश ही होगी,
खबर न बाहर जाने पाए मकान से !

सबकुछ मयस्सर, फिर भी क्या कमी है ?
'मजाल' कभी कभी जिंदगी ताकते हैरान से !

Friday, December 10, 2010

"मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनाने वाली हूँ" - फुटकर हास्य-कविताएँ ( Hasya Kavitaen - Majaal )

कुछ फुटकर हास्य कविताएँ, थोड़े थोड़े दर्शन से साथ ;)

1. "मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनाने वाली हूँ",
    अगर रिश्ता पति पत्नी,
    तो खबर ख़ुशी की,
    अगर लैला मजनू,
    तो लग गयी वाट !
    कभी कभी जिंदगी में,
    घटनाओं से ज्यादा,
    मायने रखते 'मजाल',
    उनके हालत !

2.  दुर्जनों की सौ सौ वाह वाही,
     कर न पाएगी  उम्रभर,
     सज्जनों की दस दुहाई,
     पर कर जाएगी काम,
     सड़े फलों से बेहतर खाना ,
     ताज़ा छिलके  'मजाल',
     खुमानी की तो निकलेगी, गुठली भी बादाम ! 

...... और एक नज़्म : 

 *  जिंदगी की आपाधापी,
    गर्माते मिजाज़ के बीच,
    कहीं से,
    उड़ कर आया,
    यादों  का एक टुकड़ा,

    और कर गया,
    आँखों को.
    जरा जरा सा नम,
    अचानक हुई इस फुहार,
    से हो  गयी,
    जस्बातों की,
    तपती जमीन गीली,
    और,
    माहौल खुशनुमा हो गया !

Thursday, December 9, 2010

फुटकर हास्य कविताएँ और ' मजालिया अढाईपंती '

यूँ तो हास्य होता है फकत हास्य, और उसका लक्ष्य होता सिर्फ मनोरंजन, मगर किसी भी चीज़ को विधा का रूप दे कर उसकी विवेचना करी जा सकती है. जैसे की होने को सिर्फ एक लड़की है, पर जो शायरों  की नज़र पड़ी, तो फिर जुल्फों से ले कर होंठ, कमर से ले कर आँखे, एक एक पर चुन चुन कर जिक्र, और कमबख्त तकरीबन हर अदा पर नाजुक से नाजुक ख्याल को शेरों में बाँध लेतें है ! यही बात हास्य पर भी लागू होती है. हास्य कविता चाहे शुद्ध हास्य कविता हो या दर्शन, व्यंग्य को या  गंभीर काला हास्य, अलग अलग तरीको से उसको निभाया जा सकता है.

अब होता यह है की किसी एक तरीके का दुहराव, आपको  धीरे धीरे उससे उकता देता है, और इसीलिए हर एक  विधा में समय समय पर कुछ नयापन लाना जरूरी है. इसी परंपरा को जारी रखते हुए मियाँ मजाल ने एक नयी हास्य  विधा का इजात करने की सोची है ! इसको हम कहेंगे 'अढाईपंती' ! 

अंग्रेजी में जिसे poor jokes या pj कहते है, इसे उसी  का व्यवस्थित रूप समझिये. इसकी शैली जापानी हाईकू (haiku ) जैसी  है. हाइकू एक छोटी सी  रचना होती है जिसमे तीन लाइनें होती है. इन  तीन लाइनों के कुछ नियम होते है, पर यहाँ हम सिर्फ अढाईपंती के नियमों के बारें में बात करेंगे. तो कुल मिला कर अढाईपंती हास्य विधा वो हुई जिसमे :

१. हाइकू की तीन लाइन की तर्ज़ पर ही ढाई ( दो और आधा ) लाइन का  मीटर हो.
२. पहली दो  पंक्तियाँ या लाइनें तुकबंदी में हो, जो की भूमिका बाँधें  , और तीसरी (आधी लाइन -अढाई )  एक अचानक उटपटांग,   कुछ-तोबी, poor joke  किस्म का ब्रह्म वाक्य (!)  हो, जिससे  की हास्य का सर्जन हो.

उदहारण के लिए :


तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
एक दूजे के लिए.

ऊपर की रचना को लें, तो उसमे पहली और दूसरी लाइनों  में ६-६ शब्द है, और वो परस्पर तुकबंदी में लग रहे है. तीसरी लाइन में चार शब्द है, ६ के मुकाबले ४ को  तकरीबन आधा मन जा सकता है, तो इस तरह यह हुई अढाई रचना. अब इस रचना में एक भाव है जो की बड़ा स्वाभाविक सा है - हम और  तुम, एक दूजे के लिए. पहली दो  पंक्तियों  के बाद कोई तीसरी पंक्ति पढ़े, तो उसे कोई ख़ास हैरानी नहीं होगी, क्योकि 'हम तुम एक दोजे के लिए' भाव एक बड़ी ही आम सी बात है. अब इस अढाई रचना में कुछ-तोभी-पना, कुछ ऊटपटाँग, कुछ absurd किस्म का रूप अढाई'पंती'  कहलाएगा. जैसे की :

तुम और मैं, मैं और तुम,
मैं और तुम, तुम और मैं,
तुक में है !!!


अब इस रचना में 'तुक में है'  ब्रह्म वाक्य की तरह रचना को पूरी तरह से उल्जहूल बन देता है की यह क्या बात हुई ! आप उम्मीद कर रहे है कुछ रोमांटिक चीज़ की, और कोई आपके मूड की ऐसी तैसी कर दे. तो इस चीज़ पर आप बोल सकते है की - ये क्या अढाईपंती है !

अभी एक किस्त और झेलना बाकी है, उसके लिए आपको कुछ दिनों की महौलत दी जाती है. हम अपना हुनर थोड़ा और मकम्मल कर लें, बाकी की पिक्चर इंटरवेल  के बाद ! 





   

Wednesday, December 8, 2010

ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले, सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले ! ( Shayari - Majaal )

ग़ज़ल हो पूरी कैसे, दोपहर होने के पहले ?
सोच हो जाती रुखसत , बहर होने के पहले !

या तो फलसफे ही, कर गए दगाबाजी,
याक़ी  खामोश तूफाँ, कहर होने के पहले !

साँप का काटा, या लत का मारा,
दर्द मजा देता, जहर होने के पहले !

कागज़ी शेर तो खूब कहे  'मजाल',
अँधेरे का क्या करें, सहर होने  के पहले !!

Tuesday, December 7, 2010

शुद्ध हास्य-कविता - बच के कहाँ जाओगी रानी ! ( Hasya Kavita - Majaal )

बच के कहाँ जाओगी रानी !
हमसा कहाँ पाओगी रानी !
इतने दिनों से नज़र है तुझपे,
रोच गच्चा दे जाती है !
आज तो मौका हाथ आया है !
बस तुम हो और,
बस मैं हूँ, बस !
बंद अकेला और कमरा है !
इतने दिनों से सोच रहा हूँ,
अपने अरमां उड़ेल दूँ,
सारे तुझ पर ,
आज तू अच्छी हाथ आई है ! 

करूँगा सारे मंसूबे पूरे !
आज तो चाहे जो हो जाए,
छोड़ूगा नहीं,
ऐ सोच !
तुझे,
कविता बनाए बिना !!!

Monday, December 6, 2010

यहाँ तो हर शेर ही वाह-वा है, ऐसी दाद से हमें तौ-बा है ! ( Shayari - Majaal )

यहाँ तो हर शेर ही वाह-वा है !
ऐसी दाद से,  हमें तौ-बा है !!

जो दौर दोनों तरफ से तारीफों का ,
जो गौर करिएगा, बस एक सौदा है !

गलतफहमियाँ, मुगालतें है पनपी जो,
उखाड़ जड़ करिए, अभी पौंधा है !

शर्मों-हया, बुर्कापरस्त महफ़िल में,
मजाल सा एक कुछ कहीं कौंधा है.

Sunday, December 5, 2010

थोड़ा हास्य, थोड़ा दर्शन : शायरी-ए-Fusion ( Shayari - Majaal )

जिंदगी का भरोसा नहीं,  कब क्या, दिखा दे,
Windows का नया version आया हो गोया !

सवाल-ए-जिंदगी, क्या करें, क्या न करें,
Abort,Retry,Fail ? सामने आया हो गोया !

अचानक हो गया वो यूँ दुनिया से रुखसत,
Ctrl Alt Del  किसी ने  दबाया हो गया !

धीरे धीरे हुए सपने मक्कमल ऐसे,
Inkjet से print out बाहर आया हो गया !

दिल बहला सभी का आगे बढ़ जाते 'मजाल',
फलसफा Fwd Email  का अपनाया हो गोया !

Friday, December 3, 2010

कहानी - लाइसेंस

सौरभ RTO  में बैठा License का फॉर्म भरने में लगा था.
" साले , ये हरामी लोग, बिना पैसे खाए कोई काम नहीं करते", पास बैठा काली शर्ट पहना एक आदमी बडबडा रहा था.
"साला फॉर्म है की क्या.... जाने कैसे भरना है ....? साले ये हरामी लोग ....." वो बडबडाता जा रहा था. सौरभ हँसी दबा गया. सीधा सदा फॉर्म था. नाम , पता, फोटो, कुछ प्रमाण पत्र, ये सब जानकारी तो लगती ही है, " इसमें क्या अजीब है... ?!" उसने मन ही मन सोचा.
सामने खड़े आदमी की उस पर नज़र पड़ी. "साहब, बहुत झंझट है, बहुत चक्कर लगवाते है, बहुत लटकाते है, आप बोलो तो मैं ५०० में बैठे बैठे आपका काम करवा दूँ." 
थोड़ी बात चीत करने के बाद उस एजेंट ने  काली शर्ट वाले से ४०० में सौदा पटा  लिया. काली शर्ट वाला खुश की मोल भाव करके सौ रुपये बचा लिए !
"साहब,आप भी करवा लो.."
"नहीं, मैं खुद कर लूँगा..."
"अरे, बहुत झंझट है साहब...."
उसकी बात नज़रंदाज़ करता हुए सौरभ लाइन में लग गया.
" ये attest नहीं है, करवा ले लाओ" बाबू खडकी पर खड़े एक आदमी से बोल रहा था.
"देखा, साले ये हरामी लोग..." पास बैठे काली शर्ट वाले ने  फिर से दोहराया और सौरभ की तरफ अपनी बात की  सहमती पाने के लिए देखने लगा.
"Attest तो करवाना पड़ता है भाईसाहब, फॉर्म में साफ़ लिखा है,  जो तरीका है, वो है, क्या कर सकते है...." सौरभ के जबाब से उसे निराशा हुई ...!
"साले खांमखां परेशान करते है..."  वो व्यक्ति फॉर्म हाथ में लिए, गुस्से में बडबडाते हुए उन लोगों के सामने से निकला. काली शर्ट वाला अपना समर्थक पाकर खुश हुआ !
सौरभ का नंबर आया. फॉर्म पूरा ठीक से भरा था, सो रसीद कटवाई, और तीन दिन बाद license  ले जाने को कहा.
इसी तरह से उसका learning license भी बना था. अब तीन दिन में उसका परमानेंट भी बन जाएगा. सौरभ ये सोच कर खुश हुआ.
तीन दिन बाद वो license लेने RTO पहुँचा. लाइन में लगा, रसीद दिखाई , license लिया और ख़ुशी ख़ुशी चल दिया. बाहर जाते वक़्त उसे एक आवाज़ सुनाई दी "ये  साले बाबू लोग..." देखा तो एक आदमी फॉर्म भरने में उलझा हुआ था. शर्ट भी काली ! पास से गुज़ारा तो देखा  की वो कोई दूसरा आदमी था.
"कुछ समझ में नहीं आ रहा क्या?" सौरभ ने मदद करनी चाही, वो  अच्छे मूड में था.
"हाँ यार, ये फॉर्म , इतना सारा भरना है.... जाने क्या क्या है...."
"सीधा सा तो है, क्या नहीं आ रहा आपको ?"
"अरे, ये लोग सौ बातें भरवाते है फॉर्म में खांमखां ,परेशान न करे तो इनकी कमाई कैसे हो... खाए बिना  कुछ काम करते नहीं साले   "
"पर मेरे तो कर दिया !! "
"हूँ ...." काले शर्ट वाले ने उसकी बाते अनसुनी कर दी.
शक्ल तो पुराने वाले से नहीं मिल रही थी , पर आदमी ये सौरभ को वहीँ लगा !

Thursday, December 2, 2010

शायरी - तजुर्बा ( Shayari - Majaal )

बहुत ही ऊँचें दाम की निकली,
चीज़ मगर वो काम की निकली !

शुरू किया आज़माना मुश्किल,
ज्यादातर बस नाम की निकली !

मौका मिला तो सरपट भागी,
ख्वाहिशें थी लगाम की निकली !


अँधेरा   देखा उजाले में जब ,
सुबह भी दिखी शाम की निकली !

फ़िज़ूल-ए-फितूर हटा दे गर तो,
बाकी जिंदगी आराम की निकली !

महोब्बत से पाई जन्नत 'मजाल',
झूठी बातें ईमाम की निकली !

Wednesday, December 1, 2010

आशा का दीपक - दर्शन हास्य-कविता

शायद आप लोगों ने भी स्कूल के दिनों रामधारी सिंह 'दिनकर' की इसी नाम से एक कविता पढ़ी हो. इसे उसका मजालिया संस्करण मानें. हालाकि सीधे सीधे तो इसका दिनकर जी की कविता से कोई संबंध नहीं है ...

मियाँ 'मजाल' ने देख रखी,
कई रमिया और छमिया,
पूरी नहीं तो भी,
लगभग आधी दुनिया,
नुस्खे जांचे परखे है ये सारे,
जो तुम आजमाओ,
आशा नहीं, तो हताशा से नहीं,
नताशा से काम चलाओ !
सुबह होने को दीपक बाबू !
कुछ देर और निभाओ !

तुमने आशा से उम्मीद लगाईं,
उसने दिया ठेंगा दिखाई,
लड़कपन में चलता है ये सब,
दिल पर नहीं लेने का भाई.

आशा मुई होती हरजाई,
कभी आए, तो कभी जाए,
पर जाते जाते सहेली किरण को,
भी  पास तुम्हारे छोड़ते जाए,
किरण दिखे छोटी बच्ची सी,
मगर है यह बड़ी अच्छी सी,
आशा नहीं तो न सही,
किरण से ही दिल बहलाओ !
सुबह होने को दीपक बाबू !
कुछ देर और निभाओ !

बहुत मिलता है जीवन में,
और बहुत कुछ खोता है,
चलता रहता खोना पाना,
होना होता,  सो होता है.
निराशा के पल भी प्यारे,
बहुत कुछ सिखला जातें है,
रुकता नहीं कभी भी, कुछ भी ,
ये पल भी बढ़ जातें है.

ख्वाब मिले, उम्मीद मिले,
अवसाद , या धड़कन दीर्घा,
सपना मिले, किरण मिले,
मिले आशा, या प्रतीक्षा,
जो भी मिले बिठालो उसको,
गाडी आगे बढाओ ... !
सुबह होने को दीपक बाबू !
कुछ देर और निभाओ !

मिले प्रेम या मिले  ईर्षा,
मन न कड़वा रखना.
सारी चीज़े है मुसाफिर,
राह में क्या है  अपना ?
सीखते जाओ जीवन से,
अनुभवों को अपने बढ़ाओ,
आशा के जाने से पहले,
एक सपना और पटाओ !

नसीब हुआ जो भी तुमको,
उसी में जश्न मनाओ.
सुबह होने को दीपक बाबू !
कुछ देर और निभाओ !