को लगी खुजाल,
कि लिखे कुछ धमाल,
ते मच जाए बवाल !
बहुत सोचा 'मजाल',
की बहुत पड़ताल,
ढूँढा लेके मशाल,
पर दिखा न ख़याल,
थी सोच की हड़ताल,
हुआ बहुत बेहाल,
पर मिला न निकाल !
तब सोचा 'मजाल',
है बेवजह मलाल,
इंसा की क्या मिसाल ?
बस खुदा कर सके निहाल.
खैर, बहरहाल,
जो हुआ वक़्त हलाल,
खुदी मिटी खुजाल,
खुद-ब-खुद ख़ुशी बहाल !
तो कहो मियाँ 'मजाल',
है ना जिंदगी कमाल !
है ना जिंदगी कमाल !
इतना काफी फिलहाल ....
4 comments:
तो कहो मियाँ 'मजाल',
है ना जिंदगी कमाल !
इतना काफी फिलहाल ....
बहुत मजेदार रही ये हास्य कविता
हो बेखतर लिख तो सही
यां ख्याल का सवाल क्या ?
ये है बिलागरी रख हौसला
कोई पूछ्ले , मजाल क्या ?
खुद-ब-खुद ख़ुशी बहाल !...Beautiful line.
अमां ज़िन्दगी थी फ़टेहाल,
ये पढ़ा तो हुये मालामाल।
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