वो पूछते है हमसे,
शायरी करने का नुस्ख़ा,
वाकिफ तो हम मगर,
उन्हें समझाएँ कैसे,
" कि ' यूँ ' ! "
लफ़्ज़ों से ज्यादा,
मायने रखता है लहज़ा,
कि आप कहे " ऐसे ",
और हम कहें,
" कि ' यूँ ' ! "
कभी कभी एक बात के,
मतलब निकले कई,
कि हमने कहा " वैसे "
और वो समझें,
" कि 'यूँ' ! "
हो खुदा भी परेशान,
कमबख्त क्या कह गया ?!
ऐसी शायरी भला,
जनाब करें क्यूँ ?
बाद हफ्ते देखो और,
सोचो ' लिखा ही क्यों ? '
'मजाल' लिखिए जरूर,
मगर न लिखिए ' यूँ ! '
5 comments:
यूँ कि ..अब लिख ही दिया है तो पढ़ भी लिया ....बढ़िया लगी रचना ..
अब सोच में पड़ गये है कि
वाह वाह ऐसे कहें या कहें कि यूं..
मजाल है किसी की जो लिख सके यूँ !
हा हा हा हा हा
क्या पता हो शायरे आज़म का अब कैसा मिजाज़
हम कहें कि हाल क्या है वो कहें बस 'यूं' ही हूं
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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