Tuesday, September 21, 2010

हास्य कविता - अंड बंड : मेरी वो, तेरी वो, कौन वो ! ( Hasya Kavita - Majaal )

दिन का, शाम का रातों का,
ख़ुशी का ग़म का, जस्बातों का,
मतलब क्या होता सब बातों का ?
'मजाल' मतलब वही, जो तुम निकाल लो !

एक था चीनी,
नाम था 'क्वान  वोह'
गया वो अमेरिका,
पाने कुछ काम वो !

काम न मिला,
मिली गर्मी दोपहरी,
पीछे पड़ गयी दो बहने
टैरी  और मैरी !

भाग के आ गया 'वोह' 
अमेरिका से भारत,
पीछे आई दोनों बहनें,
शुरू हो गयी महाभारत!

कैसे निभाता वोह,
परिस्थिति अब ऐसी,
दो दो बीवी उसकी,
टैरी  और मैरी ! 

कोई पूछे, कह देता,
अब जो है, सो है,
ये  'टैरी वोह' है,
और ये 'मैरी वोह' है !

दुनिया आफत का जंगल सही,
बिन बातों का बतंगड़ सही,
दंगल को मान मंगल  सही,
लड़ाई में भी मज़ा निकाल लो !

अब बहनों की सोच,
थी बच्चो के माफिक,
शहरों  की गलियों से,
थी वो ना वाकिफ,

भूल   जाती थी, 
रास्ता आए दिन,
मुसीबत वोह की,
आती थी बुलाए बिन !

" 'मैरी वोह' खो गयी !"
' हैं  ! तेरी 'वो' खो गयी  !'
" 'टैरी वो' नहीं खोई, 
'मैरी वोह' खो गयी ! "

'हाँ हाँ,  समझ गए,
खो गयी है तेरी 'वो'   !'
'ना जी, खोई तो  है 'मैरी वोह',
'मैरी वोह'  और न की टैरी वोह' !'
'हैं... ?! '

कभी खो जाती थी 'टैरी वोह',
कभी गुम जाती थी 'मैरी वोह',
हालत जैसे चाहे, जो भी हों,
मुफ्त मर जाता  था 'क्वान  वोह'  !

" 'टैरी वोह' खो गयी !"
' हैं  ! मेरी 'वो'  कहाँ खोई ?'
'' 'मैरी वोह'  नहीं खोई, 
'टैरी वो'  खो गयी !

" कहीं नहीं खोई 'मेरी वो' , 
मौजूं है मेरे ही  घर में 'वो' .."
पर  अभी तो मेरे घर  में थी !'
''मेरी 'वो' तेरे घर क्या करती ?!'

'वो सब छोड़ो  ,
पहले 'टैरी वोह' को ढूँढो  !'
'अरे, जब खोई ही नहीं,
 तो क्या ढूँढो ?! "
"अरे, खो गयी है  'टैरी वो' "
कहा ना,  है मेरे घर में 'वो'
'अभी तो कहा  था,
 घर में है 'मेरी वोह' !'
'है .. ?! '

अपना लो जो भी हथकंडा  है,
नतीजा जीवन का बस अंडा है,
इसलिए  भाई का सीधा सा फंडा है,
जहाँ  मिले मौका, हँसी निकाल लो ! 

2 comments:

संजय @ मो सम कौन... said...

सही फ़लसफ़ा है मज़ाल साहब, जहाँ मौका लगे, हँसी निकाल लो।
वैसे ’मेरी वोह’ मिली क्या कहीं?

उम्मतें said...

तेरी और मेरी की इतनी फिक्र मजाल साहब को है तो हम बेफिक्र हुए :)

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