Tuesday, September 28, 2010

ग़ज़ल : ग़म को ही ओढ़ सो गए रजाई की तरह ! ( Shayari - Majaal )

बस इसलिए की, जयका-ए-जिंदगी  पता चले,
चखते  है  ग़म जरूर, पर हलवाई की तरह !
नहीं देतें है पनाह, ज्यादा देर हम ग़म को ,
वाकिफ है, ये  टिक जाता घरजमाई की तरह !

इक बार कर गया  जो घर, ये ग़म  अन्दर,
ताउम्र  सहना पड़ सकता, लुगाई की तरह !
कड़क वक़्त, कड़क जेब, कड़क ठण्ड थी 'मजाल',
ग़म को ही  ओढ़ सो गए रजाई की तरह !

9 comments:

SATYA said...

बहुत सुन्दर रचना

यहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा

kshama said...

कड़क वक़्त, कड़क जेब, कड़क ठण्ड थी 'मजाल',
ग़म को ही ओढ़ सो गए रजाई की तरह !
Wah! kya baat kahi hai!

Unknown said...

प्रयास सराहनीय है

मजाल जी !
मुझे उम्मीद है करत करत अभ्यास के आप ग़ज़ल में भी पारंगत हो जायेंगे..बस लगे रहो, अच्छी ग़ज़लें पढ़ते रहो और उनसे सीखते रहो....

शुभ कामनाएं

www.albelakhatri.com पर पंजीकरण चालू है,

आपको अनुरोध सहित सादर आमन्त्रण है

-अलबेला खत्री

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया ...गम को जितना भाव दो उतना ही बढ़ता है

निर्मला कपिला said...

बस इसलिए की, जयका-ए-जिंदगी पता चले,
चखते है ग़म जरूर, पर हलवाई की तरह !
वाह वाह क्या मजाल है जो हम न हंसें। बहुत खूबसूरत्। गज़ल। बधाई।

Apanatva said...

mai to aapkee tippaneeyo se hee badee prabhavit thee....... Aaj blog par aaeeaur lekhan kee fan ho gayee......
bahut badiya........
sabhee panktiya ek se badkar ek hai..

निर्मल गुप्त said...

वाह मजाल साहब -वाह .

Avii said...

Saahaab..
Bahot dino se blogging kar rahaa hu.. Lekin Afsos hua ki wo waqt yuhi zaaya ho gayaa...
Abb jaake aapse mulakaat huii...

Behadd Umda...

संजय @ मो सम कौन... said...

अरे वाह,
गम से बेगम और बेगम से गम, सफ़र मजेदार है और इलाज भी बढि़या है, ओढ़ कर सो जाओ सुसरे गम को।
समझौता गमों से कर लो।
ऐ गम, तू अपना काम कर और हम अपना काम करेंगे।

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