Saturday, November 6, 2010

दर्शन हास्य - " प र व च न ! "

भगवन !
यह जगत भगदड़ !
सब तरफ भगमभग !
" हम परथम ! हम परथम !" सब बस यह रट !
मन व्यथत !
यह जगत,
लगत असत मम !
बस उलझन उलझन !
यह प्रशन, मम समझ पर !
मदद !!!
हल ! भगवन ! हल !

वत्स 'भरम मल' !
जगत सरल !
न प्रशन , न उत्तर, न लक्ष्य !
यह बस यह ; जस तस  !
यह सब भरम, दरअसल,  मन उपज !
जब मन भरमन सतत ,
तब हरदय धक धक !
धड़कन बढ़त - न वजह !
अतह, मत मचल !
धर सबर !

जब  जब मन असमनजस,
तब नयन बन्द,
कर  स्मरण मम !
हम सत्य !

हम अटल !
चरम, हम परम !
हम ब्रह्म !

कर श्रवण वचन मम !
जब मन व्यथत,
कर गरहण, अन्न जल,
हलक भर भर !
ढक  तन,
कर शयन - गहन !
तज सब मम पर !
तवम सब असमनजस, सब भय,
हम लय हर!

रह मस्त,रह मगन !
बस यह - यह बस !
फकत !

जगत सरल !

5 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गुडम-गुडम.

निर्मला कपिला said...

बहुत बढीय़ा। धन्यवाद।

उम्मतें said...

उत्तम वचन ! टपकट व्यथा सब तरफ ! त्वं प्रश्नं लखत भय परत !

Majaal said...

आप अभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए शुक्रिया ...

Deepak chaubey said...

रह मस्त,रह मगन !
बस यह - यह बस !
फकत !
बहुत बढीय़ा। धन्यवाद

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