कुछ तुमे भरो, कुछ हम भरे,
तब जा कर ये, जखम भरें !
हुआ लबालब, छलक जाएगा,
ये आँखें अश्क, कुछ कम भरें !
बच कर ही रहना उससे तुम,
अक्सर वफ़ा का वो दम भरे !
काम पीने के तक न आएगा,
क्यों समंदर-ए-ग़म भरे ?!
रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !
13 comments:
रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !
इसी तरह दोस्ती निभती है जी
रहे दोस्ती ये कायम 'मजाल',
बिल तुम भरो, कभी हम भरें !
इसी तरह दोस्ती निभती है जी
वाह वाह मजाल साहब क्या बात
बिल तुम भरो, कभी हम भरें
वाह वाह
पहले और आखिरी शेर में जमीन आसमान की तबीयत का फर्क है !
सही है, जखम मिलकर बांटने से जल्दी भर जाता है। उम्दा ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::पूर्णता
काम पीने के तक न आएगा,
क्यों समंदर-ए-ग़म भरे ?!
...vaah badhiya sher.
आप सभी लोगों का ब्लॉग पर पधारने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ....
बढ़िया बात ...ज़ख्म भी भरें और बिल भी ...
bahut badhiya !
आखरी लाइन भले मजाक में आप ने कही हो पर हर बार मजाक में एक गंभीर बात और सन्देश दे देते है | हम टिप्पणी भले मजाक वाली लाइन पर करे पर सन्देश ले लेते है |
हुआ लबालब, छलक जाएगा,
ये आँखें अश्क, कुछ कम भरें !
वाह!
अच्छी ग़ज़ल...
आपका सवाल चर्चा मंच पर देखा...अपना ईमेल दें आपको भेज देता हूँ...
मेरे ब्लॉग पर भी पधारें..
जब दिल जाते हैं मिल ,
तो चुक जाता है बिल .
और दो दोस्तों की शायरी देख कर ,
ये जमाना जाता है हिल !
अब इसके आगे तुम करो फिल ...:)
विवेक
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