थोड़ी आँकड़ेबाजी, थोडा हास्य, थोडा दर्शन, और थोड़ा बचपना ....
एक बार की है बात,
छोटू और सच, दोनों साथ.
झूठ ने आ कर किया कबाड़ा,
तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा !
छोटू बोले झूठे भाई,
आओ बैठो चारपाई.
झूठ बोला नहीं रे यारा,
चाहूँ सुविधा पाँच सितारा !
छोटू सोचा इतना नखरा,
झूठ का अंदाज़ उसको अखरा.
पहले रह गया हक्का बक्का,
फिर छोटू ने मारा छक्का !
भाई तुम मेरा ७ निभाना,
माँ देती खर्चा बस आठ आना !
ये सुन झूठ ने किया बहाना,
और हो गया वो नौ दो ग्याहरह !
सच छोटू का सच्चा संगी,
झूठ तो निकला दस नंबरी !
सच और छोटू हमेशा यारा,
और जिंदगी के हुए पौ बारह !
7 comments:
achchi seekh deni waali sachchi rachna! :-)
बच्चॊं को बड़ी पसन्द आयेगी.
सुन्दर रचना...
बारह तक की गिनती याद हो गई ।
आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....
अच्छी बाल कविता !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
latest post तुम अनन्त
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