आखिर का आखिर क्या ?!
इस सोच से शातिर क्या ?!
खाँमखाँ ताउम्र फिकर की,
'जो हो गया, तो फिर क्या' ?!
तलवार या क़त्ल-ए-खंज़र,
अब करे आरज़ू जाहिर क्या ?!
ग़म भी हो ही गया रुख्सत,
उसकी भी करते खातिर क्या ?!
जिंदगी लतीफा है हँस लो,
क्या पैर 'मजाल' सिर क्या ?!
8 comments:
आखिर का आखिर क्या ?!
इस सोच से शातिर क्या ?!
man moh lia
हंस लिया छुप गया ग़म मेरा
टीप कर और करुं ज़ाहिर क्या ?
क्या लिखूं आपसे बेहतर जनाब
मैं भला आप सा माहिर क्या ?
ट्रेलर तो कल देख लिया था,
भाई सा कोई शायर क्या ?
खाँमखाँ ताउम्र फिकर की,
'जो हो गया, तो फिर क्या' ?!
आखिर का आखिर क्या ?!
इस सोच से शातिर क्या ?!
सही बात है ये कमबख्त सोच भी। शुभकामनायें।
सही सन्देश ....जो हो गया सो हो गया ..
आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए आभार ....
जिंदगी लतीफा है हँस लो,
जिसने जिंदगी में आपकी इस पंक्ति को उतार लिया समझ लो उसकी जिंदगी सुधर गयी...बेहतरीन रचना है आपकी...
बधाई
नीरज
खाँमखाँ ताउम्र फिकर की,
'जो हो गया, तो फिर क्या' ?!
बिल्कूल सही कहा ,तो फिर क्या |
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