यकीनन असर हर एक दुआ निकलेगा,
नतीजा उम्दा हर इम्तिहा निकलेगा !
चुन ले एक जगह, खोदते रह जिंदगी,
कभी न कभी तो वहाँ कुआँ निकलेगा !
शर्मिंदा थोड़े से वो, थोड़े से बेयकीं,
सोचा नहीं था, पहुँचा हुआ निकलेगा !
शामिल न हो आग में, वो खुद ही बुझेगी,
अपने दम पे आखिर, कितना धुँआ निकलेगा ?!
परवरिश ही तूने ऐसी, पाई है 'मजाल',
निकलेगा भी तो, कितना मुआ निकलेगा ?!
7 comments:
बहुत खूब जी, एक एक शेर तजुरबे से निकला है।
कोशिश करने में हर्ज ही क्या है...
चुन ले एक जगह, खोदते रह जिंदगी,
कभी न कभी तो वहाँ कुआँ निकलेगा !
बहुत खूब। उमदा शेर। शुभकामनायें।
शामिल न हो आग में, वो खुद ही बुझेगी,
अपने दम पे आखिर, कितना धुँआ निकलेगा ?!
बहुत नेक सलाह ...
आप सभी का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....
आज अपनी पसंद खास तीसरा और चौथा शेर !
शामिल न हो आग में, वो खुद ही बुझेगी,
अपने दम पे आखिर, कितना धुँआ निकलेगा ?!
बहुत बहुत खूब!
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