Tuesday, November 2, 2010

हास्य-कविता : आप से तू, और फिर तू से गाली में, आ गए आखिर, साहब अपनीवाली में !

आप से तू और फिर,
तू से गाली में,
आ गए आखिर,
साहब अपनीवाली  में !

भेद नहीं करते वो,
साली और घरवाली में,
कितनी ही बार पाए गए,
पी कर टुन्न  नाली में !

सीखे है सारे ऐब,
उन्होंने उम्र बाली में,
छूटे है जेल से,
सरकार  अभी हाली में !

समझ लीजिये लगे हुए है,
कोई काम जाली में,
इतनी जल्दी  नहीं होता ,
सुधार हालत माली में !

क्या इल्म देंगे आप  उन्हें,
हिंदी या बंगाली में,
फर्क ही नहीं जिन्हें,
ग़ज़ल और कव्वाली में !

काटें ही उगने है जनाब,
बबूल की डाली में,
माहौल चाहे  श्राद्ध हो,
या फिर  दिवाली में ?!


बस  चट्टे बट्टे ही नहीं,
भरे है थाली में,
शरीफ भी है बचे हुए,
इस बस्ती मवाली में,
जिमेदारी को अपनी,
समझिए 'मजाल',
चुनाव नहीं होते है,
यूँ ही बस खाली में !

7 comments:

संजय @ मो सम कौन... said...

बहुत कुछ है भाई, आपकी इस थाली में।

निर्मला कपिला said...

भेद नहीं करते वो,
साली और घरवाली में,
कितनी ही बार पाए गए,
पी कर टुन्न नाली में !
ाउर ये पँक्तियाँ---
क्या इलम देंगे----- बढिया व्यंग शानदार। बधाई।

vandana gupta said...

बहुत खूब्।

नीरज गोस्वामी said...

काटें ही उगने है जनाब,
बबूल की डाली में,
माहौल चाहे श्राद्ध हो,
या फिर दिवाली में ?!

वाह...है किसी की मजाल जो इस बात को झुटला सके...???? :-)

नीरज

Majaal said...

आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए आभार ...

anshumala said...

वाहवाह वाहवाह वाहवाह

इसे कहते है खस्ता शेर

उम्मतें said...

मुहावरे में टिप्पणी दूं तो आपने 'उसकी खाल खींच कर भुस भर दिया' :)

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