Saturday, November 13, 2010

व्यंग्य-कविता : ' सिद्धि.' ( Hasya Vyangya Kavita - Majaal )

एक पागल था,
कुछ कुछ दिमागी घायल था,
कोई घास न देता था उसे,
पर वो खुदी का कायल था !

एक दिन आ गया,
वो दुनिया से तंग,
सोचा काट दूँ अब,
जिंदगी की पतंग,
निकला चुपचाप घर से,
लेकर ये उमंग,
बाहर मूसधार बारिश,
पर साहब दबंग.

भगवान को भी शायद,
उस पर तरस आया,
उन्होंने भी उस पर,
कुछ नरमी बता दी,
इससे पहले वो कूद के,
दे  दी अपनी जान,
प्रभु ने बीच रास्ते ही,
उस पर बिजली गिरा दी !


पर शायद ऊपरवाले के हिसाब में,
कुछ गड़बड़ी हो गयी,
बिजली तो गिराई थी,
काम तमाम करने के लिए,
पर पगले की उल्टे  चाँदी हो गयी !

बिजली सर पर गिरी,
मगर बच गया पग्गल,
ऊपर से हो गया उसके,
सर पर प्रकट,
एक गोला, वृताकार,
शुद्ध दुग्ध धवल !

बावले को रातों रात,
चाँदी की गोदी मिल गयी,
जो देखे उसे बोले,
"आपको तो बोधि मिल गयी !!!' 

अब सैया पहले ठेट बावरे,
ऊपर लोगों ने पिलादी भाँग !
निर्गुण के गुणों का बखान,
भूखे को जैसे मिल जाए पकवान !
 
" आप परम पूज्य, आप विद्वान,
आप सर्व श्रेष्ट, आप है महान ! "

अब पागलों के लिए तो होती,
ऐसी उलजहूल  बातें,
साक्षात  वरदान !!!
हौसले हो गए फितूरी,
अरमान  खाके  हिचगोले,
पहुँचे  ऊफान !

बकने लगा वो अंट संट,
जो मन आए - अंड बंड,
" मै सर्व ज्ञाता,
मुझे भेजे स्वयं विधाता !  
मेरी शरण आओ,
मैं तुम्हे मुक्ति दिलाता ! "

ऐसे पागलों से बचके रहना भाई,
इन्होनें जाने कितनो की दुर्गति करवाई,
बसी बसाई गृहस्तियों को दिया उजाड़,
अच्छे खासे समझदारों ने इनके पीछे,
अपनी मति गँवाई !

हाए, मन का जटिल विज्ञान !
पाले जाने कै अभिमान,
यथार्थ जगत अनदेखा कर,
पाना चाहे कौन सा ज्ञान ?!

कौन मूढ़, कौन चतुर,
कौन ऊँच , कौन नीच ?
मिटटी दफ़न मिटटी  'मजाल',
हिसाब बराबर, ख़तम दलील !

व्यवहार सरल,पर चिंतन  गिद्ध,
सब स्वीकार , न कुछ निषिद्ध,
जो हर स्तिथि रखे संयम,
सुख हो दुःख, रहे वो सम,
निभाए सब रह इसी जगत,
'मजाल' माने उन्हीं को सिद्ध.

9 comments:

संजय @ मो सम कौन... said...

गहरी बात कह जाते हो भाई, सही व्यंग्य इसे ही कहते हैं। जिसे अंड बंड समझकर हंसना है हंस ले, जिसे समझना हो, समझ ले कि जीवन का दर्शन क्या है। लाभ तो दोनों तरह से ही है।
बहुत पसंद आई ये कविता भी।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मिटटी दफ़न मिटटी 'मजाल',
हिसाब बराबर, ख़तम दलील
यही सत्य है..

anshumala said...

संजय जी ने सही लिखा है कि जिसे हसना है हस ले जिसे समझना जो तो जीवन दर्शन समझ ले |

Majaal said...

आप सभी का आने और प्रतिक्रियाएँ देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ....

निर्मला कपिला said...

ऐसे पागलों से बचके रहना भाई,
इन्होनें जाने कितनो की दुर्गति करवाई,
बसी बसाई गृहस्तियों को दिया उजाड़,
अच्छे खासे समझदारों ने इनके पीछे,
अपनी मति गँवाई !
बहुत काम का सन्देश दिया। आपकी इतनी मजाल कि ऐसे बाबाओं के खिलाफ आवाज उठायें धन्य हो महाराज। आखिरी पँक्तियाँ भी बहुत अच्छी लगी। बधाई।

उम्मतें said...

आज मो सम कौन जी के साथ हम भी हैं !

Unknown said...

wah! maza aa gaya kya likha hai :)

Ek sarthak prayas.blogspot said...

Hamari to aadhi se jyada Samajh me hi nahi aai

Unknown said...

bahut acha.

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