एक बार हुआ यूँ,
की ग़ालिब सोचे,
कुछ यूँ,
क्या हो अगर,
हो यूँ,
और न यूँ !!
अब जब ग़ालिब,
सोचे यूँ,
तो हुआ यूँ,
की यूँ से मिला यूँ,
कुछ यूँ,
की पता न चला,
ये यूँ, यूँ,
या ये यूँ, यूँ !!
क्योंकिं,
ये यूँ,
ही है,
कुछ यूँ,
की जो सोचने लगो,
यूँ या यूँ,
तो,
यूँ ही यूँ में,
निकलते जाते,
यूँ पे यूँ !
यूँ पे यूँ !!
ग़ालिब पहले परेशान,
यूँ,
या,
यूँ !
अब नई परेशानी,
की ये यूँ, यूँ,
या ये यूँ, यूँ !!
चेहरा-ए-ग़ालिब,
कभी यूँ,
और,
कभी यूँ !!
इसलिए कहे 'मजाल',
ग़ालिब,
आप सोचे ही क्यूँ,
यूँ ? !!!
8 comments:
हा हा हा,
यूँ कि गालिब यूँ न सोचे तो एक शेर और कम हो जाता न?
हुई मुद्दत कि गालिब मर गया,
पर अब भी याद आता है
वो हरइक बात पर कहना
कि .. होता तो क्या होता।
मस्त लिखी है मजाल भाई, शुद्ध नहीं बल्कि विशुद्ध है, यूँशुद्ध है:)
यूँ मुझ को ये ख्याल आया
की आप को ऐसे ख्याल आते है क्यूँ
आगे कुछ बन नहीं रहा यूँ
तो और कुछ कहू क्यूँ
आप लोगो का ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार ....
मजाल, काफी अच्छा लिखा है आपने.. खूब घुमाया ग़ालिब को भी , याद करेगा किसी मजाल से भी पला पड़ा था ..यूँ |
एक ही कविता में 32 बार ‘यूं‘ का प्रयोग ? एक दांत के लिए एक यूं, चचा गा़लिब के सारे दांत खटटे कर दिए आपने ...वाह मजाल जी...बहुत खू़ब..
एक ही कविता में 32 बार ‘यूं‘ का प्रयोग ? एक दांत के लिए एक यूं, चचा गा़लिब के सारे दांत खटटे कर दिए आपने ...वाह मजाल जी...बहुत खू़ब..
बहुत बढ़िया...कुछ नहीं होकर भी सब कुछ कह दिया इस कविता में आपने....
न ख्याल न खवाब सिर्फ सब कुछ यूँ ही .....बेहतरीन.....
कभी समय मिले तो कोशिश कीजियेगा मेरे हिंदी ब्लॉग पे आने की
आप से बहुत कुछ सीखना है.....भाषा का प्रयोग...अगर कही कोई गलती लगे तो बताइयेगा...
बड़ी मेहेरबानी होगी...
kuch yu chala sher'o ka silsila mehfile yaaro ke darmiyaa..
ke bas.. 1433 hi bache maarne ke liye! lol!
nice lines! :)))
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