जो थोड़ा हेर फेर हो जाए कागजों में,
सभी अपने कर्म दुरुस्त करवा रहे है,
की उनकी भी पक्की हो जाए जन्नत,
चित्रगुप्त को सभी पटा रहे है !
अंदर इन्द्र देव भाईलोगों से अपने,
आज का चढ़ावा गिनवा रहे है,
हफ्ता न पहुंचे जब तक सेवकों का,
प्रभु कहाँ बारिश करवा रहे है ?!
आगे सब नेताओं की टोली इकट्ठी,
मानो परम बोधी ही पा रहे है,
'की यूँ नहीं यूँ, ये दरअसल यूँ',
नारद मुनि सबको सुलगा रहे है !
नीचे सिखाते थे तो जो 'नेति, नेति',
अप्सराओं को देख कह रहे 'देती क्या ? देती ?'
आँखें गर करती है, हाल-ए-दिल बयाँ तो ,
सब संत बड़े खूँखार नजर आ रहे है !
ये भी खूब रहीं मियाँ 'मजाल',
हाल यहाँ के तो है कमाल,
ऊपर से तुर्रा ये, की जो भी मरें,
कमबख्त सब स्वर्ग ही जा रहे है !
गौर करें कोई हमारा भी तर्क,
कब तक बचा रह पाएगा ये स्वर्ग ?
की धुरंधर सारे, सभी महानुभावी,
तो यहीं का टिकट कटवा रहे है !
दूर से देखने पर तो यही लगता था,
'वाह ! वहाँ क्या मज़ा होता होगा !'
बुरे फँसें 'मजाल', आ कर जन्नत में,
हमने तो सोचा था, कुछ नया होता होगा !
14 comments:
बुरे फँसें 'मजाल', आ कर जन्नत में,
हमने तो सोचा था, कुछ नया होता होगा !
बहुत अच्छी लगी यह रचना....
वाह! क्या बात है! बेहतरीन!
वाह.. अंतिम पंक्तियाँ ज़बरदस्त रहीं...
अजी नया कैसे होगा ..जब सब यहीं के लोंग पहुँच जायेंगे :):)
बढ़िया व्यंग
वाह!
क्या बात है!
अच्छी लगी यह रचना
आभार
मिलिए ब्लॉग सितारों से
जो थोड़ा हेर फेर हो जाए कागजों में,
सभी अपने कर्म दुरुस्त करवा रहे है,
की उनकी भी पक्की हो जाए जन्नत,
चित्रगुप्त को सभी पटा रहे है !....hasya ke madhyam se satik vyand.
नेति नेति और आगे का मांगपत्र भी बढ़िया रहा !
bahut khub vakt hi vakt kambakht
maj aya badhai
इतने धुरंधर स्वर्क जेया रहे हैं तो वो स्वर्ग क्या रह पायग .... भाई ऐसे में हमें तो नर्क ही ठीक है ....
भाई मान गये मजाल जी !
बहुत बहुत कारीगरी वाला काम कर दिखाया आज तो आपने........
बहुत ख़ूब !
बधाई !
मजाल साहब मैं आपको एक बेनामी टिप्पणीकार ही मानता था. आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा और आपकी कविता पढ़ी. मनोरंजक और मजेदार.
कविता के भाव में तलवार की धार है,
शब्दों और लाइनों में हास्य की बहार है।
बहुत गजब!
Are wah Mazal ! kar diya kamal
swarg na mile to nahee koi malal.
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