वक़्त ही वक़्त कमबख्त ! हास्य कविता,व्यंग्य,शायरी व अन्य दिमागी खुराफतों का संकलन (Majaal)
वक़्त ही वक़्त कमबख्त है भाई, क्या कीजे गर न कीजे कविताई !
Saturday, January 15, 2011
शायरी पर शायरी (Shayari - Majaal )
हमें सोचा की बस बनी,
रही वो जस की तस बनी !
जब तक जस्बात जब्त थे,
हालत रहमो तरस बनी !
गर्मी थी, बेकसी अन्दर,
बाहर सुकून-ए-खस बनी !
कभी निकली बनके महक,
कभी मवाद-ए- पस बनी !
ग़ालिब ताउम्र जुटे 'मजाल',
तब जाकर ढंग की दस बनी !
Newer Posts
Older Posts
Home
View mobile version
Subscribe to:
Posts (Atom)