एक दिन बंटी,
खेल रहा था अंटी,
पिताजी ने देखा,
मार दी डंडी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न खेलेगा अंटी !
एक दिन बंटी,
जाता था पगडंडी,
पगडंडी में बंटी को,
दिख गयी फंटी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब रोज जाता पगडंडी !
एक दिन बंटी,
बंटी गया मंडी,
ख्यालों में थी फंटी,
चवन्नी की चीज़,
खरीद ली अठन्नी,
माताजी को बताया,
पड़ गयी चमटी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न मंडी, न फंटी !
एक दिन बंटी,
लेने तेल अरंडी,
दाम न चुकाए,
दुकानदार बना चंडी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न करता बेमंटी !
एक दिन बंटी,
बड़ा हुआ बंटी,
एक दिन बंटी,
पीने गया शिकंजी,
आईने में देखा,
समझा खुद को तोप तमंची,
समझा खुद को तोप तमंची,
पहलवान से भिड़ गया,
उसने दो तीन जड़ दी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न बनता घमंडी !
एक दिन बंटी,
खेलता था धुलंडी,
रंग गया आँख में,
दो दिन तक अंधी,
बंटी की बज गयी घंटी,
अब न रंग, न धुलंडी !
बड़ा हुआ बंटी,
अब रहा न सनकी,
सबका प्यारा बंटी,
राज दुलारा बंटी,
समय रहते उसकी,
अब बज जाती है घंटी,
इसलिए अब बंटी,
न करता कुछ अंड बंडी !
9 comments:
ha.ha.ha.ha.ye banti kaun hai?
अरे वाह बज गई बंटी की घंटी .... बहुत सुन्दर बाल रचना.... बधाई.
'बंटी की बज गयी घंटी !'
...सुंदर बाल गीत।
खूब घंटी बजा दी बंटी की ...:):)
बहुत सुन्दर बाल रचना|
बिलकुल बच्चों जैसी मासूम रचना ..........
उम्मीद है कि बंटी अब ब्लॉग लिख रहा होगा :)
बहुत अच्छी कविता।
अब बंटी ने लिखा कुछ ढंग की
अब नहीं बजेगी उसकी घंटी
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