Tuesday, November 16, 2010

शायरी : ' आखिर का आखिर क्या, इस सोच से शातिर क्या ' (Shayari - Majaal)

आखिर का आखिर क्या ?!
इस सोच से शातिर क्या ?!

खाँमखाँ ताउम्र फिकर की,
'जो हो गया, तो फिर क्या' ?!

तलवार या क़त्ल-ए-खंज़र,
अब करे आरज़ू जाहिर क्या ?!

ग़म भी हो ही गया रुख्सत,
उसकी भी करते खातिर क्या ?!

जिंदगी लतीफा है हँस लो,
क्या पैर 'मजाल' सिर क्या ?!

8 comments:

Anamikaghatak said...

आखिर का आखिर क्या ?!
इस सोच से शातिर क्या ?!
man moh lia

उम्मतें said...

हंस लिया छुप गया ग़म मेरा
टीप कर और करुं ज़ाहिर क्या ?

क्या लिखूं आपसे बेहतर जनाब
मैं भला आप सा माहिर क्या ?

संजय @ मो सम कौन... said...

ट्रेलर तो कल देख लिया था,
भाई सा कोई शायर क्या ?

निर्मला कपिला said...

खाँमखाँ ताउम्र फिकर की,
'जो हो गया, तो फिर क्या' ?!

आखिर का आखिर क्या ?!
इस सोच से शातिर क्या ?!
सही बात है ये कमबख्त सोच भी। शुभकामनायें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सही सन्देश ....जो हो गया सो हो गया ..

Manish aka Manu Majaal said...

आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए आभार ....

नीरज गोस्वामी said...

जिंदगी लतीफा है हँस लो,

जिसने जिंदगी में आपकी इस पंक्ति को उतार लिया समझ लो उसकी जिंदगी सुधर गयी...बेहतरीन रचना है आपकी...

बधाई
नीरज

anshumala said...

खाँमखाँ ताउम्र फिकर की,
'जो हो गया, तो फिर क्या' ?!

बिल्कूल सही कहा ,तो फिर क्या |

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