बच्चा सोचे, कब इस बचपन से छुटकारा पाऊँ,
बूढ़े की ख्वाहिश, फिर से जो, बच्चा मैं बन पाऊँ !
गरीब देख ठाट साहब के, अपनी किस्मत रोए,
साहब सोते देख गरीब को, 'चिंता गायब होवे !'
पौधा तरसे जाए, कोई उसको डाले पानी,
कैक्टस जो गलती से गीला, याद करे वो नानी !
औरत मुजरे सी सबको रिझाने वाली अदा चाहे,
मुजरे वाली से पूछो तो, बस एक मरद मिल जाए !
भोगी देख योगी को सोचे मन काबू हो जाए ,
योगी मन काबू करने में जीता जी मर जाए !
एक दूसरे को सब ताके, सोच के उनको पूरा ,
बिना ये जाने की दूसरा भी खुद को माने अधूरा !
मियाँ 'मजाल' देख के सबको जरा जरा मुस्काए,
मगर मामला, असल मसला उनके भी ऊपर जाए !
अनबूझी, अनसुलझी सी, लगे शाणी और कभी गेली,
जो भी हो पर है दिलचस्प - जिंदगी मजेदार पहेली !
9 comments:
जिन्दगी के अधूरेपन से परिपूर्ण- हास्यरस में पगी गूढ बात... जिन्दगी मजेदार पहेली । बहुत बढिया.
सही है....
जब पास था तो जिया नहीं
फिर खो गया सो मलाल है !
वो जबाब अब जो सवाल है
उसे बूझ लूं क्या मजाल है !
वाह मजाल जी क्या बात कही है | दूर के ढोल ऐसे ही सुहाने होते है दूसरो की हर चीज हमेसा अच्छी ही लगती है और उसे पाने के बाद पता चलता है की हमारे पास तो इससे भी अच्छी चीज थी पर हमने उसकी कदर नहीं की |
अली साहब, हमारी मानिए तो अब अपने ब्लॉग पर भी बकायदा शायरी शुरू कर ही दीजिये ;)
आप सभी लोगों का प्रतिक्रियाओं के लिए आभार ....
वाह ………मज़ा आ गया सच कहा है।
हास्य व्यंग मे बहुत कुछ कह जाते हैं आप। बहुत खूब। बधाई।
:-) very true!
ये जिंदगी का यथार्थ है |बिलकुल सच है |
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