कुछ उन्मुक्त क्षणिकाएँ समझ लीजिये, या बे-बहरिया त्रिवेणी; या फिर फुरसतिया दिमाग की खुराफाती तबीयत का नतीजा मान कर ही झेल जाइए ....
1. दुनिया से बेखबर ,
कुत्ते की तरह सोता मजदूर,
मेहनत का ईनाम .... आराम !
2. उलझन, प्रश्न अनुत्तरित!
जगत सरल अथवा गूढ़ ?
किमकर्तव्यविमूढ़ !
3. लो हो गया ये भी !
अब क्या, अब क्या ?
वक़्त ही वक़्त कमबख्त !
4. पेट भूखा और दिल उदास,
ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !
10 comments:
हाज़िर जनाब !
मेरी तरफ से भी हाजिरी लगा ही लीजिये सर !
"चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है" खूब याद दिलाया आपने !
पहला अच्छा लगा दूसरा समझ नहीं आया तीसरा आप के ब्लॉग का नाम पर ये चौथा क्या था ?
1/10
पढ़ तो लिया, लेकिन इसको समझा कैसे जाए ?
बरखुदार ये है क्या ?????????????
मजाल तो की थी, लेकिन पहले के बाद दूसरा समझ नहीं पाया आशीष.
---
नौकरी इज़ नौकरी!
ठीक वैसी ही प्रतिक्रियाएं, जैसे की उम्मीद थी, आप सबने निराश नहीं किया ;)
सभी का आभार.
मैंने भी बहुत कोशिश करी समझने की, गुस्ताखी माफ़ हो !
present sir
ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है ! ....vah.
Post a Comment