Tuesday, November 30, 2010

चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !

कुछ उन्मुक्त क्षणिकाएँ समझ लीजिये, या बे-बहरिया त्रिवेणी; या फिर फुरसतिया दिमाग की खुराफाती तबीयत का नतीजा मान कर ही झेल जाइए ....
 
1. दुनिया से बेखबर ,
    कुत्ते की तरह सोता मजदूर,
    मेहनत का ईनाम .... आराम !

2.  उलझन,  प्रश्न अनुत्तरित!
    जगत सरल अथवा गूढ़ ?
    किमकर्तव्यविमूढ़ ! 

3. लो हो गया ये भी !
    अब क्या, अब क्या ?
    वक़्त ही वक़्त कमबख्त !

4. पेट भूखा और दिल उदास,
    ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
    चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है !

10 comments:

उम्मतें said...

हाज़िर जनाब !

चुंनिंदा शायरी said...

मेरी तरफ से भी हाजिरी लगा ही लीजिये सर !

चुंनिंदा शायरी said...

"चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है" खूब याद दिलाया आपने !

anshumala said...

पहला अच्छा लगा दूसरा समझ नहीं आया तीसरा आप के ब्लॉग का नाम पर ये चौथा क्या था ?

उस्ताद जी said...

1/10

पढ़ तो लिया, लेकिन इसको समझा कैसे जाए ?
बरखुदार ये है क्या ?????????????

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

मजाल तो की थी, लेकिन पहले के बाद दूसरा समझ नहीं पाया आशीष.
---
नौकरी इज़ नौकरी!

Manish aka Manu Majaal said...

ठीक वैसी ही प्रतिक्रियाएं, जैसे की उम्मीद थी, आप सबने निराश नहीं किया ;)
सभी का आभार.

Administrator said...

मैंने भी बहुत कोशिश करी समझने की, गुस्ताखी माफ़ हो !

ashish said...

present sir

arvind said...

ग़म को ही खा गए कच्चा चबा कर,
चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज़ चलता है ! ....vah.

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