मिला एक, चाहे दो गया,
हँसता ही चला वो गया !
यादें कुरेद हासिल हो क्या ?
वापिस कब आया, जो गया ?!
मैला सा कुछ मलाल था,
आँसू बहा, और धो गया !
पूरी जिंदगी आगे बची,
ऐसा भी क्या है खो गया ?!
एक उम्र बाद पता चला,
क्या बीज था वो बो गया !
देखी जिंदगी, हुई हैरानगी,
सब खुद ब खुद ही हो गया !
ये सोच चीज़ कातिलाना,
समझ फँसा तू, तो गया !
इलाजे ग़म आसाँ 'मजाल',
भरपेट खाया, सो गया !
5 comments:
जिन्दगी कहां बाकी रहती है दोस्त...
मजाल साहब,
आपके फिलासोफराना तेवर , बेहतर कहूं याकि बेहतरीन !
मैला सा कुछ मलाल था,
आँसू बहा, और धो गया !
बहुत खूब ..
आप सभी का प्रतिक्रियाओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ....
मजाल जी
क्या बात है ! कमाल की रचना है
जी कर रहा है हम भी कुछ कहें…
रचना मजाल की
कितने कमाल की
बहुत ख़ूब ! बहुत ख़ूब !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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